कोरोना से लड़कर खुद व परिवार की बचाई जान, अब उसी जोश के साथ मरीजों को बचाने के लिए लड़ रहे जंग
कोरोना से मरीजों की जान बचाते-बचाते कई डॉक्टर भी इस बीमारी की चपेट में आ गए। लेकिन उन्होंने अपना साहस नहीं खोया। इस दौरान इस बीमारी से लड़ते हुए उन्होंने न केवल खुद को बचाया बल्कि अपने परिवार को भी सुरक्षित रखा। अब ठीक होकर फिर उसी जोश और जज्बे के साथ मरीजों की जान बचाने में जुटे हुए हैं। ऐसे डॉक्टरों ने खुद को सेल्फ आइसोलेशन में रख कमरे, कपड़े और बर्तन तक की सफाई की लेकिन इस दौरान इन्होंने अपने आत्मविश्वास को कमजोर नहीं होने दिया। ऐसे ही फ्रंट लाइन पर रहते हुए कोरोना की लड़ाई से जंग जीतने वाले शहर के तीन डॉक्टरों से दैनिक भास्कर संवाददाता ने बातचीत कर उनके अनुभव के बारे में जाना।
डबल आई को याद रख कोरोना से जंग जीतना आसान
कोरोना से जंग जीतकर फिर से मरीजों का इलाज करने जुटे फोर्टिस एस्कार्टस अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट न्यूरोसर्जन एंड स्पाइन सर्जन डॉ. हिमांशु अरोड़ा ने कहा कि हर व्यक्ति को इस वक्त सिर्फ डबल आई को याद रखना है। डबल आई यानी इम्युनिटी और आइसोलेशन। सिर्फ इन्हीं दो शब्द से कोरोना की जंग आसानी से जीती जा सकती है। उन्हाेंने बताया संक्रमित होने के बाद घर में खुद को आइसोलेट कर लिया। बेडरूम में 17 दिन तक बंद रख कमरे की सफाई, बर्तन की सफाई झाडू पोछा आदि कार्य किए। बुजुर्ग मां-बाप और बच्चे को अपने से दूर रखा। इसके बाद स्वस्थ होकर हम फिर से उसी जोश के साथ मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
संक्रमित होने पर डर लगा लेकिन जोश में कमीं नहीं आई
पाली सीएचसी में कार्यरत डॉ. आशु आनंद ने बताया कि उनकी डयूटी गांवों में लोगों की स्क्रेनिंग करने के लिए लगाई गई थी। इसी दौरान वह कोरोना की चपेट में आ गए। पहले तो थोड़ा डर लगा लेकिन जोश में कोई कमी नहीं आई। घर के थोड़ी दूर एक कमरा किराए पर लेकर खुद को आइसाेलेट कर लिया। 18 दिन तक खुद खाना बनाते, बर्तन व कपड़ाें की धुलाई करते रहे। परिवार और बच्चों से दूरी बनाकर रखी। इसके बाद ठीक होकर फिर उसी जोश के साथ काम पर जुट गए। डॉ. आनंद ने कहा कि खुद के संक्रमित होने के बाद थोड़ा डर जरूर महसूस हुआ लेकिन आत्मविश्वास और जोश में कोई कमी नहीं आई।
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